भारतीय राजनीति में अपराधीकरण का बढ़ता प्रभाव (सामान्य विश्लेषण)

संदीप सिंह चौहान

भारतीय राजनीति में अपराधीकरण का बढ़ता प्रभाव (सामान्य विश्लेषण)

Keywords : परिदृश्य, सुशासन, अदालतों, विशिष्ट, गतिविधियों


Abstract

सारा प्रशासन प्राथमिक रूप से उनकी सुख-सुविधाओं के लिए बना है। इसी धारणा से विशिष्ट वर्ग मुफ्तखोरी करने, शासन का व्यक्तिगत-पारिवारिक सुविधाओं के लिए प्रयोग करने, सिफारिश, भाई-भतीजावाद आदि के रास्ते अपने निजी अधिकर बढ़ाने आदि की जो प्रवृत्ति शुरू होती हैं वह पार्टी और व्यक्ति के भेद को मिटाती है। भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, कमीशन खाने, धोखाधड़ी करने की प्रवृत्ति राजनीति को सफेदपोश और नकाबधारी अपराधियों का जमावड़ा बना देती है। उनके मुँह और लेखन में नैतिकता की बात सन्देह पैदा करने लगती है। उनके कामों में ईमानदारी, प्रतिबद्धता और जनता के प्रति लगाव अब अपवाद स्वरूप ही देखे जा सकते हैं। अतः भ्रष्टाचार और राजनीति में अपराधीकरण की बीमारी से निपटने के लिए जो नीतिगत खामियां और प्रशासनिक लापरवाही है, उससे निजात पाने का कोई सार्थक संघर्ष कहीं भी नहीं दिख रहा है। अतः बदलते आपराधिक राजनीतिक परिवेश में इस पर ठोस कदम उठाना आवश्यक ही बल्कि अपरिहार्य है।

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