महात्मा गाँधी के विचारों से परिवर्तित भारतीय सामाजिक स्थिति का एक विश्लेषण

चन्द्रदीप नन्दलाल यादव

महात्मा गाँधी के विचारों से परिवर्तित भारतीय सामाजिक स्थिति का एक विश्लेषण

Keywords : प्रकृति, स्वाभाविक, उद्विकास, परिवर्तन, गत्यात्मक, न्यूनाधिक सत्याग्रह शाश्वत, आविष्कार, पाश्चात्य औद्योगिकीकरण, प्रतिनिधी, ट्रस्टीशिप।


Abstract

परिवर्तन प्रकृति का नियम है। परिवर्तन की प्रक्रिया निरन्तर (अनवरत रूप से) चलती रहती है। समाज इसी प्रकृति का एक महत्वपूर्ण भाग है इस कारण से सामाजिक परिवर्तन स्वाभाविक है। सभी समाजों में परिवर्तन की प्रकृति एक समाज नहीं होती है। कुछ समाजों में तीव्र तो कुछ में मंद होती है। महात्मा गाँधी एक दार्शनिक अराजकतावादी एवं आदर्शवादी विचारक थे। उन्होंने भारत के सामाजिक बदलावा में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। गाँधी जी ने सामाजिक परिवर्तन के अनेक साधन बतायेः- सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह, असहयोग, अनशन, हड़ताल, सविनय अवज्ञा एवं ट्रस्टीशीप, चरखा पद्धति, बुनियादी एवं स्त्री शिक्षा के विचारों के माध्यम में सामाजिक परिवर्तन लाने का प्रयास किया। गाँधीजी के विचारों से परिवर्तित होकर भारतीय समाज की स्थिति में श्रमिकों की स्थिति में सुधार, जाति व्यवस्था में परिवर्तन, स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन, आर्थिक क्षेत्र में प्रगति राजनीतिक चेतना में वृद्धि, सामाजिक जागरूकता में वृद्धि, पारिवारिक क्षेत्र में अधिकारों की प्राप्ति, शक्ति संरचना में बदलाव, शिक्षा का प्रचार-प्रसार के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन हुआ।

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