केन्द्र-राज्य संबंधों मेें राज्यपाल की भूमिका का एक अभिनव विश्लेषण

राकेश कुमार

केन्द्र-राज्य संबंधों मेें राज्यपाल की भूमिका का एक अभिनव विश्लेषण

Keywords : केन्द्र-राज्य, संघवाद, राज्यपाल, राष्ट्रीय न्याययिक, उपलब्धियाँ, टकराव


Abstract

वर्तमान समय में वैश्विक मानवता, आज जहाँ जलवायु परिवर्तन, वैश्विक तापन, आंतकवाद, नस्लवाद और इबोला एवं स्वाईन फ्लू जैसी महामारियों का सामना कर रहा है। केन्द्र एवं राज्यांे के मध्य सामंजस्यपूर्ण मधुर संबंधों को होना नितान्त आवश्यक है। भारत जैसी उभरती हुई वैश्विक महाशक्ति में जहाँ नक्सलवाद, प्रान्तीयता, क्षेत्रीयता, जातियता एवं विखण्डनात्मक प्रवृतियाँ विद्यमान है और समाज में अशिक्षा, बेरोजगारी, निर्धनता का बोलबाला है। इनकी प्रासंगिकता और भूमिका चुनौतीपूर्ण एवं कठिन हो जाती है। स्वतंत्रता के 70 वर्षों के बाद भारत द्वारा प्राप्त की गई उपलब्धियों पर दृष्टिगत स्पष्ट होता है कि भारत समष्टिगत क्षेत्रों में आश्चर्यजनक उपलब्धियां हासिल की है। और विश्व महाशक्तियों के मध्य एक सम्मानजनक स्थान प्राप्त करने का लोहा मनवाया है। किन्तु यदि हम तश्वीर के दूसरी और जनर डाले तो हमें निराशा हाथ लगती है। क्योंकि संविधान निर्माताओं ने जो अपेक्षा केन्द्र व राज्यों से रखी थी उसकी प्राप्ति नही हो सकी है। संविधान सभा में वाद-विवाद के दौरान पं. नेहरू ने कहा था, ’’भूतकाल में लोकतंत्र को राजनीतिक लोकतंत्र के रूप में ही पहचाना गया, जिसमें मुख्य तौर से एक व्यक्ति का एक मत होता है, किन्तु मत का उस व्यक्ति के लिए कोई महत्व नहीं होता जो निर्धन और निर्बल हैं या ऐसे व्यक्ति के लिए जो भूखा है और भूखा से मर रहा है।’’

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