राजस्थान सहित आपदा प्रबंधन में भारत के बढ़ते कदमः एक विश्लेषणात्मक अध्ययन
- Author मुकेश कुमार
- DOI http://wwj
- Country : India
- Subject : राजनीति विज्ञान
प्रकृति में जो परिवर्तन का दौर चल रहा है वह दिन प्रतिदिन गंभीर होता जा रहा है। पिछले 30 वर्षों में जलवायु परिवर्तन के अनेक दौर देखने को मिले। वैश्विक गर्माहट के कारण मौसम में भयंकर बदलाव दिखाई दे रहे है। बाढ़, सुखा, अकाल, चक्रवात, भूकम्प, सूनामी, समुन्द्री तुफान, जैसी भयंकर आपदाएँ आज आम हो चली है। वास्तव में इन सबके पीछे परोक्ष एवं अपरोक्ष रूप में मानव स्वयं जिम्मेदार है। प्रकृति के साथ मनुष्य ने अन्तर अनुशासनात्मक संबंध बनाने के बजाय शोषणकारी, दोहनकारी संबंध स्थापित किये जिसका परिणाम आज हम विभिन्न तरह की प्राकृतिक आपदाओं के रूप में दिखाई दे रहे है। उत्पत्ति के आधार पर आपदाएँ दो तरह की होती है जैसे- (1) प्राकृतिक आपदाएँ (2) मानव जनित आपदाएँ। इन दोनो ही प्रकार की आपदाओं से जन-धन की अपार क्षति होती है। प्राकृतिक आपदाएँ- परिवर्तन प्रकृति की सतत् प्रक्रिया है ऐसे परिवर्तन जिनका प्रभाव मानव के हित में होता है जिन्हें प्रकृति का वरदान कहा जाता है। लेकिन जब परिवर्तनों का प्रभाव मानव समाज का अहित करना है तो इसे प्राकृतिक आपदाएँ कहा जाता है। प्राकृतिक आपदा प्रकृति में कुछ ही समय में घट जाने वाली घटना है। ऐसी घटनाओं के घट जाने के बाद मानव समाज को जिन समस्थाओं का सामना करना पड़ता है वे समस्याये संकट मानी जाती है। मानव जनित आपदाओं में भाग अत्यन्त विनाशकारी आपदा के रूप में प्रति वर्ष लाखों व्यक्तियों की जान लील ले लेती है। शहरों में विद्युत उपकरणों के संबंध में बरती जाने वाली असावधानियॉ जिम्मेदार है। ग्रामीण क्षेत्र में जलनशील पदार्थों (बीड़ी, सिगरेट) का असावधानीपूर्ण उपयोग जिम्मेदार है।
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