प्रेमचंद के साहित्य में नारी चेतना
- Author विजय कुमारी
- DOI
- Country : India
- Subject : हिन्दी
समाज सामाजिक सम्बन्धां का जटिल जाल होता है और इन सब के केद्र में स्वयं मनुष्य है । यह मनुष्य ही जो समाज में संगठन एवं व्य स्थापित करने में सदा से प्रयत्नशील है। और उसे प्रगति एवं गतिशीलता की दिशा में ले जाने प्रयासां में लगा हुआ है । साधारणत इस व्यवस्था का कर्ता जब पुरुष हो गया तो वह स्वःभावता अहंकारी भी हो गया और वह अपनी स्थिति को सामाजिक परिवेश में सर्वाच्च स्तर में कामयाब भी हुआ । यही मनोभाव पुरुष को वर्चस्ववाद की ओर ले गया। उसने यदि स्त्री को अधिक पढ़ी लिखी जागरूक, तर्कशील, बुद्धिमान पाया अपने को अन्दर ही अन्दर खघ्तरा महसूस करने लगा । पुरुष सदियां से स्त्री को निम्न स्थान देने लगा। समाज, धर्म और लगभग जीवन के सभी क्षेत्रां में स्त्री दास शुद्रादी के रूप में जीवन जीने के लिए अभिक्षप्त थी।
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