समकालीन हिन्दी कहानियों में बदलता समाज
- Author सुजाता गुप्ता
- DOI
- Country : India
- Subject : Hindi Literature
समकालीन हिन्दी कहानियों में बदलती भारतीय संस्कृति उसके आधार पर, हमारी बदलती सोच को देखा जा सकता है। बदलाव का कारण आधुनिकता से आगे बढ़कर उत्तर-आधुनिकता का स्वरूप, उसका विकास-क्रम कहा गया है। इन कहानियों में हमारा समाज, व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक- विभिन्न स्तरों पर चित्रित हुआ है। आधुनिकता से बढ़कर उत्तर-आधुनिकता के कारण, संचार-क्रांति, मीडिया, मोबाइल और इन्टरनेट - ब्रेइन सभी विज्ञापित कारणों की वजह से हमारा समाज निरंतर परिवर्तितहो रहा है। ‘गलोबलाइजेशन’ के द्वारा हम पास तो आ गए, पूरा विश्व हमारा घर बन गया, पर हम स्वयं के परिवार, समाज और अपनों से दूर होते गए। हम आभासीय बन गए, जिसको देख तो पाते है, मगर स्वरूप् ठोस नहीं रह गया। यही आभास हमारी कहानियों में भी उभरा। पति-पत्नी, माँ-बाप, चाचा-चाची, दादा-दादी, नाना-नानी इन सभी चीजों की जगह ‘हम दो-हमारे दो’ के नारे ने ले ली। दो कमरों का मकान हो गया, मगर लोग सिमटते चले गए। परिवार बिखर गया, ‘संयुक्त’ नाम ‘एकल’ बन गया और व्यक्ति स्वतंत्र हो गया। वह अपने जीवन में असंतुलित होता चला गया। सारे रिश्ते बेमानी हो गए। इसी प्रकार समाज में स्त्री-स्वातंत्रय ने भी अपना पक्ष रखा। आर्थिक रूप से सबल होती स्त्री है, मगर मगर वही सबल स्त्री दहेज और प्रताड़ना का भी शिकार बन जाती है। स्वतंत्रता की चाह ने उसे घर से बाहर तो निकाल दिया, मगर बलात्कार और शोषण ने उसकी अस्मिता को छलनी कर दिया। उत्तर-आधुनिक बदलाव की परिणति समाज और व्यक्ति दोनों को प्रभावित करती गयी और समकालीन कहानियों की भावभूमि बनती गयी।
Comments
No have any comment !