स्वर्ण शिल्पी एवं कय्याबी भाषा (विशेष संदर्भ- बिहार, झारखंड के शिल्पियों द्वारा प्रयुक्त गुप्त भाषा)

प्रभात कुमार

स्वर्ण शिल्पी एवं कय्याबी भाषा (विशेष संदर्भ- बिहार, झारखंड के शिल्पियों द्वारा प्रयुक्त गुप्त भाषा)

Keywords : गनहन, लाटी, महरु, हिरण्य, हेम, हाटक, अर्थशास्त्र, लिपि, कंचन, कनक, रुक्कम, गनमेयम, बाजूबन्द, रजत, जरगर, जहब, तुलाविषम, अपसारण, उल्लेखन, परिमर्दन, स्मृति, कय्याबी, छाहँक, कोनारी, झंत, झँस, जातरूप, रसवि


Abstract

कय्याबी भाषा मुख्यतः स्वर्ण शिल्पियों द्वारा प्रयोग में लाई गई वाणिज्य-व्यापार की भाषा है। इसकी महत्ता आर्थिक, सामाजिक परिप्रेक्ष्य को संदर्भित करती है। यह आम फ़हम की भाषा न होकर केवल और केवल एक वर्ग विशेष की भाषा है। जिसे इस कार्य में संलग्न व्यक्ति द्वारा ही प्रयोग में लाया जाता रहा है। अपने व्यवसाय को अन्य समुदाय द्वारा बचाकर, उसे संजोए रखकर पीढ़ी दर पीढ़ी इसे मौखिक रूप में ही हस्तांतरित किया गया। स्वर्ण व्यवसाइयों की यह गुप्त भाषा उसकी अपनी व्यवसाय को बचाने के लिए संरक्षित किया गया है। इसी परिप्रेक्ष्य में उन बिंदुंओ पर ध्यान आकर्षित करवाने की छोटी कोशिश की गई है एवं उन प्रश्नों के उत्तर ढूंढने की कोशिश की गई है कि कैसे और किन परिस्थितियों में कय्याबी जैसी भाषाओं का जन्म हुआ है और क्यों इस पर नज़र डालने की जरूरत आन पड़ी।

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