भारतीय संगीत का समीक्षात्मक अध्ययन
- Author अनुराधा सिंह
- DOI
- Country : India
- Subject : हिंदी
भारतीय संगीत अति प्राचीन रहा है, भारत की सभ्यता एवं संस्कृति उतनी ही विस्तृत है जितना की भारत के संगीत का इतिहास। गान मानव के लिए उतना ही स्वाभाविक है जितना रूदन। भौतिक दृष्टि से ध्वनि की नियमितता एवं सन्तता से ही संगीत का उद्भव होता है। गीत स्वयं की अनुभूति है, स्वयं को जानने की शक्ति है और एक सुन्दरतापूर्ण ध्वनि की कल्पना है जिसका सृजन करने के लिए एक ऐसे अनुशासन की सीमा रेखा को मालूम करना पड़ता है जिसकी सीमा में रहते हुए असीम कल्पना करने का अवसर प्रदान करता है। मनुष्य अनुशासन में ही रहकर संगीत को प्रकट करता है, परन्तु प्रत्येक व्यक्ति के विचार, बुद्धिमत्ता, संवेदना एवं कल्पना से भिन्नता होने के कारण प्रस्तुति में भी विविधता अवश्य होती है। इस तरह देश एवं काल क्रमानुसार संगीत के मूल तत्व समाज में प्रयोग और प्रस्तुतिकरण के कारण प्रस्तुति में भी विभिन्नता अनिवार्य रूप से अवश्य होती है। इस तरह काल एवं देश के क्रमानुसार संगीत के मूल तत्व समाज में उसके प्रस्तुतिकरण और प्रयोग की शैलियों में परिवर्तन होना स्वाभाविक है।
संगीत कला में भी हर एक गुण की राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक अवस्थाओं के अनुसार बदलाव होते आ रहे हैं। लगातार विगत इस वर्षों में भारतीय शास्त्रीय संगीत एवं फिल्म संगीत की विफलताओं और उपलब्धियों का यदि अवलोकन करें तो प्रतीत होता है कि यह बदलाव विभिन्न दिशाओं में नकारात्मक एवं सकारात्मक दोनों ही प्रकार का रहा है।
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