इक्कीसवीं सदी की चुनौतियाँ और कबीर

नेहा शर्मा

इक्कीसवीं सदी की चुनौतियाँ और कबीर

Keywords : सांप्रदायिकता, ब्राह्मणवाद, मिथ्याचार, प्रासंगिकता इत्यादि।


Abstract

अध:पतन को दूर करने के लिए ही प्रत्येक युग में महान विभूतियों का जन्म होता रहा है और इन्हीं महान विभूतियों में कबीर का नाम उल्लेखनीय है। कबीर का युग रूढ़ियों, अंधविश्वासों और कर्मकांडों से भरा था। सशक्त अशक्त और कमजोर का शोषण कर रहा था। ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ वाली कहावत चरितार्थ हो रही थी। कोई किसी की बात नहीं सुनता था। लोग आडंबरपूर्ण साधना एवं मिथ्याचार में डूबे हुए थे। हिंदू और मुसलमान आपसी संघर्ष में, अपने-अपने धर्म को श्रेष्ठ सिद्ध करने में निरत थे। समाज में बहुत सारी बुराइयाँ व्याप्त थीं। कोई भी खुलकर इन सभी बुराइयों का विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था और ऐसे समय में कबीर ने समाज को एक नई दृष्टि एवं दिशा देने का काम किया। जाति, धर्म और वर्गीय शोषण जैसी समस्याएँ आज भी बरकरार हैं इसलिए कबीर की प्रासंगिकता और अधिक बढ़ गयी है।

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