अफ्रीकी प्लेट के टूटकर भारत के पश्चिम तट से टकराने से पड़ने वाले प्रभाव : एक संश्लेषणात्मक विवेचन
- Author विजय यादव
- DOI https://ww
- Country : India
- Subject :
पृथ्वी के धरातल का लगभग 71ः भाग जल और 29ः भाग स्थल भूभाग से आवृत्त हैं महाद्वीपों तथा महासागरों की उत्पत्ति से संबंधित कोई भी सिद्धान्त की वास्तविकता स्थल और जल के वितरण के तथ्यों के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता हैं वास्तव में प्लेट टेक्टानिक सिद्धान्त के आधार पर महाद्वीप एवं महासागरीय द्रोणियो एवं द्वीप तोरण की उत्पत्ति की समस्या का समाधान हो पाया है जहाँ एक और एफ. बी. टेलर ने महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धान्त का प्रतिपादन किया वही दूसरी और प्रो. अल्फ्रेड वेगनर ने 1912 में महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धान्त का प्रतिपादन किया वर्तमान प्रमाणों के आधार पर पता चला है कि सभी महाद्वीपी चलायमान है प्लेट विवर्तन सिद्धान्त के अनुसार उत्तर तथा अमेरिका पश्चिम की ओर सरक रहे हैं। वहीं अफ्रीकी प्लेट टूटकर भारत के पश्चिमी तट से टकराने वाली है वास्तव में स्थलीय दृढ़ भूखण्ड को प्लेट कहते है। इन प्लेटो के स्वभाव तथा प्रवाह से संबंधित अध्ययन को प्लेट विवर्तनिकी कहते है वास्तव में इंण्डो आस्ट्रेलियाई प्लेट में प्रायद्वीपीय भारत और आस्ट्रेलियाई महाद्वीपीय भाग शामिल है। अफ्रीकन प्लटे में पूर्वी अफ्रीका दरार घाटी (म्।त्) विकसित हो रही है यहाँ अफ्रीका का पूर्वी भाग सोमालिया प्लेट शेष महाद्वीप से अलग होकर इण्डियन प्लेट के पश्चिमी भाग, भारत के पश्चिमी तट से टकराने जा रही है जिनके भूगोल के क्षेत्र में अनेक प्रभाव पड़ने वाले है। जिनमें भारत के पश्चिमी तट पर एक नया युवा पर्वत (हिमालय भी तरह) निर्माण हो जायेगा जहाँ पर्यावरण गर्मी की जगह सर्दी व सर्दियों की जगह गर्मिया पड़ने लगेगी रेगिस्तान की जगह हरे भरे जंगल बन जायेगें नये नये समुद्री द्वीपों का निर्माण होगा यह परिर्वतन प्रभाव होने में लाखों लाख वर्ष लगेंगे।
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