महिला सशक्तीकरण के व्यावहारिक उपाय
- Author विवेक पाठक
- DOI
- Country : India
- Subject : इतिहास
महिला सशक्तीकरण के विभिन्न पहलुओं को जानने से पहले यह जानना जरूरी हैं कि लिंग असमानता किन-किन रूपों में समाज में प्रकट हों रहा हैं । गौरतलब है कि नारी की क्षमता उसकी उसकी बौद्धिकता एवं समाज में उनके स्थान के संबंध में भारतीय परंपरा अत्यधिक समृद्धशाली रही है । स्त्रियाँ हमारी संस्कृति का आधार ही नहीं वरन लोकजीवन धर्म और मानवता के विकास की कुंजी भी हैं। तैत्तरीय उपनिषद की शिक्षावली में ‘मातृ देवों भव,पितृ देवों भव, आचार्य देवों भव’ कहा गया है । इसमें माता को सबसे पहला स्थान दिया गया है । लेकिन आज स्त्रियों की स्थिति पर विचार करते समय इस बात को ध्यान में रखना होगा कि लिंग सामाजिक-सांस्कृतिक शब्द है,सामाजिक परिभाषा से संबंधित करते हुये समाज में ‘पुरुषों’ और ‘महिलाओं’ के कार्यों और व्यवहारों को परिभाषित करता है,जबकि ‘सेक्स’ शब्द ‘आदमी’ और ‘औरत’ को परिभाषित करता है जो एक जैविक शारीरिक घटना है । अपने सामाजिक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहलुओं में,लिंग पुरुष और महिलाओं के बीच शक्ति के कार्य के संबंध से हैं जहां पुरुष को महिलाओं से श्रेष्ठ माना जाता है । इस तरह ‘लिंग’ को मानव निर्मित सिद्धांत समझना चाहिये, जबकि ‘सेक्स’ मानव कि प्राकृतिक या जैविक विशेषता है । इस तरह से हम ‘लिंग’ असमानत को इस तरह से परिभाषित कर सकते है,“लैगिक आधार पर महिलाओं के साथ भेदभाव समाज में परम्परागत रूप से महिलाओं को कमजोर जाति-वर्ग के रूप में माना जाता है । वह पुरुषों की एक अधीनस्थ स्थिति में होती है ।
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