महिलाओं के विरुद्ध हिंसा को सार्वजनिक स्पेस में लाना जरूरी हैं

Keywords : हिंसा, घरेलू हिंसा, स्त्री-पुरुष, सामाजीकरण, सामाजिक


Abstract

कोविड महामारी के दौरान भारत ही नहीं पूरी दुनिया में महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा के आकड़ों में बढ़ोत्तरी , यह साबित करने के लिए महत्वपूर्ण दस्तावेज है कि पूरी दुनिया में महिलाओं की समस्या एक ही है। जिसे वह निजी और सार्वजनिक दायरे में झेलने के लिए विवश है।भारत ही नहीं, पुरी दुनिया में लॉकडाउन के दौरान कामकाजी महिलाओं के साथ-साथ घरेलू महिलाओं के दैनिक काम में बढ़ोत्तरी के साथ-साथ हिंसा के मामलों में बढ़ोतरी देखने को मिला। कई बार तो यह हिंसा शारीरिक के साथ-साथ मानसिक स्तर पर भी महिलाओं के शोषण और उत्पीड़न का कारण बना।

विश्व के अन्य देशों के अपेक्षा भारत में महिलाओं के साथ हिंसा के कारणों में कई स्तरों पर विविधता है इसकी व्याख्या एक रैखीय होकर नहीं की जा सकती है ही इसका समाधान का एक मात्र फर्मूला ही विकसित किया जा सकता है। भारत में महिलाओं के साथ हिंसा के तमाम मामले निजी दायरे में ही नहीं कई परतों में सामाजिक विवशता के कारण भी कैद है। जरूरत इस बात की अधिक है कि महिलाओं के साथ हिंसा के तमाम मामलों को सार्वजनिक लोकवृत्त का हिस्सा बने। महिलाएं इसके लिए स्वयं को शर्मिदा महसूस करना बंद करे। जरूरत इस बात की भी अधिक है महिलाओं के साथ हिंसा के मामलों को दर्ज करने वाली सामाजिक संस्थाए चाहे वह कार्यपालिका, व्यवस्थापिका, न्यायपालिका हो या लोकतंत्र का चौथा खंभा मीडिया सभी संवेदनशील भी हो।

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